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________________ SM Mahavam A kende Acham Ka B andit । चैत्यपरिपाटी स्तवनम् जाप बहु आचरेंहे, वेद भणे बहुंभाति; गाय रही तिहां एकलीहे, दुध जरे बहुख्याति ॥भविक भेद लउत्पत्ति ॥ ५॥ खाड भरी दुधे करीहे, धेनु अतिशय निधान; तरती आवी उपरहे, तापस वाध्यो वान 18 भविक भेद०॥६॥ भृगु कहे वात वशिष्टनेहे, खाड टले कहो केम; बुद्धि विचारी आपणीहे, धर्म कर्म ॥१५४॥ रहे नेम ॥ भविक० भेद०॥७॥ हेमाचल हलवो नहीहे, एकसो सुतनी जोडि; बीजा डुंगर देखताहे, एहनी नही कोय जोडि ॥ भविक० भेद०॥८॥रुषि सघला मिलि आवीयाहे, हेमाचलने पास; आदर है मान देई करीहे, भक्ति करे उल्लास ॥ भविक० भेद०॥९॥ सुणि हेमाचल आदरेहे, तुं अतिशय गुण जाण; सकल गिरिवरनो तुं धणीहे, ताहरी वहे शिर आण ॥ भविक० भेद० ॥१०॥ पुत्र भला छे ताहराहे, एकसो अति बलवंत; सेवा सारे ताहरीहे, तुं अविचल सुणि संत ॥ भविक० भेद० ॥ ११ ॥ एक पुत्र आपि अम भणीहे, पूरि अम्हारी आस; खाड पूरेवा अम तणीहे, आव्या ताहरे पास॥भविक भेद०॥१२॥ | दुहा-आदर करी आकरो, पुत्र तेज्या धरि प्रीति; आज्ञाधारक आवीया, विनय वडा कुल SOCॐॐॐ15 ॥१५॥ For Pale And Personal use only
SR No.020395
Book TitleJain Prachin Purvacharyo Virachit Stavan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotichand Rupchand Zaveri
PublisherMotichand Rupchand Zaveri
Publication Year
Total Pages411
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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