SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 300
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ShriMahavirain AartmenaKendra Achary Kailas Gyamandi A- सौभाग्य अनंत रे द्रव्य असंख्य अबाध ॥ देखे सवी जो होय रे नाण नयण नीराबाध ॥७॥नाण परम हीत बंधाला स्तवनम् पंचमीबारे सिंधु अमृत रसरेल ॥ कामगवी चिंतामणी नाण ते मोहन वेल ॥ ज्ञान विना नर अंध रे बंध नथी नही दूर ॥ पशु सरीखो दाखीजें बीजे ते भव भूर ॥ ८॥ देसा राहग क्रीया रे सहा राहग नाण ॥ पंचम अंग उच्छंगे अक्षर एह प्रमाण ॥ ज्ञानस्युं क्रीआ सूद्ध रे दूधमां साकर भेल ॥वार न लागेतरता करता कर्म उकेल ॥९॥ ते तो ज्ञानना ग्रंथे रे कारण भाष्य अनेक ॥ पिण पंचमी तप सरी रे नीरखु न बीजं अनेक ॥ पंचमी प्रेमें आराधो रे साधो कांति अनंत ॥जीम वरदत्त गुणमंजरी तेह सुणो वीरतंत ॥१०॥ ___ ढाल-२-बीजी ॥ चंद्राउलानी ॥ समरी श्रुत देवी सदारे॥हंस वाहन कर वेण ॥ ए देशी॥ जंबुद्वीपनां भरतमा रे, नयर पदम पदमपूर सारो; अजित सेन तिहां राजीयो रे, यशोमती भरतारो Dil॥१॥Jटक-यशोमती जण्यो नंदन वारु, वरदत्त नामे अति दीदारु; आठ वर्षनो जाणी भूपाले, भणवा सारु मुक्यो नीसाले ॥ जी पंडीत जी जी रे ॥ करज्यो भाव विषेशे आराधन ज्ञान %ARKHA% For Pale And Personal use only
SR No.020395
Book TitleJain Prachin Purvacharyo Virachit Stavan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotichand Rupchand Zaveri
PublisherMotichand Rupchand Zaveri
Publication Year
Total Pages411
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy