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________________ ShiMahayeJainrachanaKendra www.kobathrtm.org Achan Kailas Gyamandi वरस परिमाण; आयुनाम गोत्रवेदनी क्षयी रे, पाम्यां पद निर्वाण ॥ शांतिः॥२॥ अजरामर पद ज्ञानविलासतां रे, अक्षय सुख अनंत; कर्ता अकर्त्ता तुंहीं प्रभु रे, निज गुणनें विलसंत॥शांतिः॥ ॥३॥ प्रगट्यो दरिशनज्ञान चरण घणुं रे, भांगे सादि अनंत; असंख्य प्रदेश आकाश एक देशमा रे, अनंत गुणो भगवंत ॥ ४॥ शां० ॥ निरमल सिद्ध शीलाने उपरें रे, जोयण एक लोगंत; सादि अनंतस्थिति जिहां छे जेहनी रे, ते सिद्ध प्रणमोसंत ॥५॥शां॥ रुपातीत स्वभावछे जेहनां रे, केवल दंसण नाण; आतमध्याने सिद्ध ध्याता थकां रे, पामे सिद्ध सयांण ॥ ६॥शां०॥ एह प्रभु ध्येय समाप्पति हुइरे, ध्याता ध्यान प्रमाण; केवल कमला विमला क्षेमथी रे, वरेसिद्ध गुण खाण॥शां०॥७॥3 दहा-कर्म सयल रेकरी, अक्षय सुख अनंत; अव्ययलील अनंतता, पाम्या श्री भगवंत ॥१॥ HI ढाल ॥ जिंडुआनी देशी ॥ श्रुतदेवी समरी सदा रे, शांतिजीणंद दयाल रेजी रे ॥ पद निर वाण प्रभु पामियांजी रे, अव्यय लील निहालरेजी रे॥१॥पद०॥ जरा मरण दुःख छेदीयांजी रे, तोड्यांते कर्मनां बंधरेजी रे॥ हरी इंद्रासन हालीयाजी रे, जाणीया सयल संबंधरेजी रे ॥ पद०॥२॥ For Pale And Personal use only
SR No.020395
Book TitleJain Prachin Purvacharyo Virachit Stavan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotichand Rupchand Zaveri
PublisherMotichand Rupchand Zaveri
Publication Year
Total Pages411
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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