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________________ Shn Mahavir Jain Aradhana Kendr श्रीचतुदश गुणस्थान www.kobatirth.org. समकित पामे प्राणी ॥ ए आंकणी ॥ ४५ ॥ आतम परचित परगुण त्यागिं, राग द्वेषथि वेगलो भागि; जेहवो मार्ग जिनवर भाषे, तेहवो निज हीयामांहि राखे; एणिविधि० ॥ ४६ ॥ हंस तणी परे करि य परिक्षा, जेम लहे तेहनी दे श्रुशिक्षा; परनुं कीधुं गुण बहु जाणे, धर्माचार्यनें अति घणुं |माने; एणिविधि० ॥ ४७ ॥ शुभ अशुभ कर्म उदय जे आवे, ते भोगवतां रति अरति न पावे; कांक्षा सहित जे न करे धर्म, कल्पनाथी बंधाए कर्म; एणिविधि० ॥ ४८ ॥ समकितविण जे तप जप क्रिया, जाणुं जिम विणमेहि हरिआ; समकितनी वात कहेतां नावे पार, जिम कहीए |तिम थाये वहु विस्तार; एणिविधि० ॥ ४९ ॥ ढाल - ५ - मी ॥ राग आसाउरी ॥ नमोरे नमो श्री शेत्रंजा गिरिवर ॥ ए देशी ॥ व्रत धरोरे व्रत धरो भवियण, पामो पंचम गुणठाणरे; च्यार कषाय जिहां मद्या अप्रत्याख्यानी, तेणे निरमल थाय | पञ्चखाणरे | व्रत धरोरे व्रत धरो भवियण ॥ ए आंकणी ॥ ५० ॥ करे त्याग जे मद्य मांसनुं, करि स्थूल जीवनी रक्षा जेहरे; गणे नवकार जे चोखे चित्ते, जघन्य श्रावक कहेवाय तेहरे ॥ प्रत० ॥ ५१ ॥ For Pivate And Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शांति नाथ स्तवनम्
SR No.020395
Book TitleJain Prachin Purvacharyo Virachit Stavan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotichand Rupchand Zaveri
PublisherMotichand Rupchand Zaveri
Publication Year
Total Pages411
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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