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चोवीश
जिन
आंतरान स्तवनम्
॥१२८॥
प्यार हो, दील;॥६॥ नव भव नेह नीवारिओ रे, जग; देइ संबच्छरी दान हो, दील.| श्रावण शुदि छठने दीने रे, जग; संजम लीओवड वाण हो, दील० ॥ ७॥ तारी राजुल सुंदरी रे, जग०; देइ दीक्षा दाण हो, दील० अमावास्या आशो तणी रे, जग०; प्रभु लीयु केवल ज्ञान हो, दील॥८॥ सहस्र वर्ष प्रभु आउखुं रे, जग; पाली श्री जिनराज हो, दील; आषाढ शुदि दीन आठमे रे, जग; प्रभु लहे शीवपुर राज हो, दील०॥९॥
ढाल-३-त्रीजी॥ राग मल्हार॥नयरि निरुपम नाम द्वारामति डीपती हो लाल, द्वारा ॥ए देशी ॥ पांच लाख वर्ष नमि नेमिने आंतरं हो लाल, के नमि नेमिने आंतरं हो लाल; मुनिसुव्रत नमि नाथने छ लाख चित्त धरूं हो लाल, के छ लाख चित्तधरूं हो लाल; चौपन लाख वर्ष मुनि सुवृत मल्लीने हो लाल, के सुव्रत मल्लीने हो लाल कोड सहस वली जाणो मल्ली अर नाथने होलाल, के मल्ली अरनाथने हो लाल॥ए आंकणी ॥१॥क्रोड सहस वर्षे करी ओछं पल्योपम हो लाल, के ओछं०; चोथो भाग अरनाथने कुंथु नाथ ने हो लाल, के कुंथु०; पल्योपमर्नु अडधजाणो शांती कुंथुने
॥१२८॥
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