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________________ श्रीरोहिणी तपर्नु स्तवनम् SASARSUGAOS *** ॥१२२॥ “अथ श्री रोहिणी तपनुं स्तवन" दुहा-सुख कर संखेश्वर नमी, शुभ गुरुने आधार; रोहिणी तप महिमा विधि, कहेश्यं भवि उपगार ॥१॥ भक्त पान कुत्सित दीये, मुनीने जाण अजाण; नरक तिर्यंचमां जीवते, पामे बहु दुःख खाण ॥२॥ ते पण रोहिणी तप थकी, पामी सुख संसार; मोक्ष गया तेहनो कहुं, सुंदर ए अधिकार ॥३॥ | ढाल-१-ली ॥ शीतल जिन सहेजा नंदी ॥ ए देशी ॥ मघवा नगरी करी जंपा, अरी वर्ग थकी नहिं कंपा; आ भरते पुरी छे चंपा, राम सीता सरोवर पंपा ॥ पनोता प्रेमथी तप कीजे ॥ गुरु पासे तप उचरीजे ॥पनोता. गुरु०॥ ए आंकणी ॥ ॥१॥ वासुपूज्यना पुत्र कहाय, मघवा नामे तिहां राय; तस लक्ष्मीवती छे राणी, आठ पुत्र उपर एक जाणी॥पनोता० गुरु०॥२॥रोहिणी नामे थइ बेटी, नृप वल्लभ शुं थइ मोटी; यौवन वयमा जब आवे, तव वरनी चिंता थावे ॥ पनोता. गुरु० ॥३॥ स्वयं वर मंडप मंडावे, दूरथी राज पुत्र मिलावे;रोहिणी शणगार धरावी, जाणुं चंद्र प्रिया इहां आवी॥पनोता० गुरु० ****** ॥१२२॥ ** For And Personal Use Only
SR No.020395
Book TitleJain Prachin Purvacharyo Virachit Stavan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotichand Rupchand Zaveri
PublisherMotichand Rupchand Zaveri
Publication Year
Total Pages411
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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