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________________ ShriMahavirain AamanaKendri www.kobateh.org. ACTA San Kaiser Gamandit स्तवनम् दशीर्नु मौनएका देश ॥१॥ काल अनंतां निर्गम्यो, अनंत अनंती वार; आवी निगोदे हुँ भम्यो, केणे न कीधी सार ॥२॥ प्रभुदर्शन मुज नवि हुओ, नवि सूण्यो धर्म उपदेश; नाटीया नाटक परें, बहु बनाव्या वेष ॥३॥अनुक्रमें नरभव लह्यो, उत्तम कुल अवतार; दुर्लभ दर्शन पामियो, तार प्रभु मुज तार ॥ ४॥ ___ ढाल-५-मी॥राग धन्याश्री ॥ दुषम काले एह आलंबन, सुगुरु सदागम वाणीजी; तेहने संघे बहु सुख पाम्यां, भव मांहिं भवि प्राणीजी ॥१॥ समकीत दायक शुभ पंथ वाहक, गुरु गीतारथ दीवोजी; पशु टाली सुर रूप करेजे, तेह गुरु चिरं जिवोजी॥२॥ गुरु कुल वासे रहेतां लहिए, विनय |विवेक सवि क्रियाजी; तेहनी सेवा करता थाये, पूरण ज्ञाननां दरियाजी ॥३॥ एह स्तवन भणशे गणशे, छोडि चित्तनां चालाजी; सूरतरु सुरमणि सुर गवि प्रगटे, तस घर मंगल मालाजी ॥४॥संवत सत्तर एंसी वर्षे, स्तवन रच्युमन खंतेजी; यंत्र अनुसारे जोइ कीg, बार गाथामें तंतेजी॥५॥श्री वीर विमल गुरुसेवा करतां, ऋद्धि किर्ति बहु पायाजी; विशुद्ध विमल कहे तेहवेसंगे, पुरुषोत्तम गुण गायाजी ॥६॥ "इति श्री मौन एकादशी स्तवनम् सम्पूर्णम्" INRAMMEA4%ERICA For Pale And Personal use only
SR No.020395
Book TitleJain Prachin Purvacharyo Virachit Stavan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotichand Rupchand Zaveri
PublisherMotichand Rupchand Zaveri
Publication Year
Total Pages411
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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