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________________ S aha na Kande Acharya Sh Kasagar Gyanmandie स्तवनम् सीमंधर जिन ॥१०९॥ %E%EXCORRORISM तुष वृहि न नीठे; मांज्या विण जिम पात्र न आछु, तिम क्रियाविण साधन पाछु; मोहना० सोहना०॥८॥ मोक्ष रूप आतम निरधारी, नवि थाके जिनवर गणधारी; क्रिया ज्ञान जे अनुक्रमें सेवे, सुजस रंग प्रभु तेहने देवे; मोहना० सोहना० ॥ ९॥ ढाल-३ जी ॥ बेडले भार घणोछे राज॥ए देशी॥निश्चय कहे विण भाव प्रमाणे, क्रिया काम न आवे; आव्यो भावतो क्रिया थाकी,क्रिया जिममणन भावे॥मानो बोल हमारोराज ताणो ताण न कीजे ॥ए आंकणी॥१॥श्रमण होइ गणधर प्रव्रज्या, मिले ते भाव प्रमाणे; लिंग प्रयोजन जन मनरंजन, उत्तराध्ययने वखाणे ॥ मानोबोल ॥२॥ निज परिणामज भाव प्रमाणे, वली ओघ निर्जरा ते; आतम सामायिक भगवइमां, भारव्यु ते जुओ जुगते॥ मानोबोल ॥३॥ नय व्यवहार कहे, सवि श्रुतमां, भाव कह्योवतें साचो; पण क्रियाथी ते होय जाचो, क्रिया विण होय काचो॥ मानोबोल ॥४॥ भाव नवो क्रियाथी आवे, आव्यो ते वली वाधे; नवि पडे चढे गुणश्रेणि, तिणे मुनि क्रिया, साधे ॥ मानोबोल ॥ ५॥ निश्चयथी निश्चय नवि जाण्यो, जेणे क्रिया नवि पाली; वचन मात्र निश्चयशु ॥१०९॥ For Pave And Personal use only
SR No.020395
Book TitleJain Prachin Purvacharyo Virachit Stavan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotichand Rupchand Zaveri
PublisherMotichand Rupchand Zaveri
Publication Year
Total Pages411
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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