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________________ Sahankan Acharya Sh Kaisagersuri Syamandie स्तवनम् सीमंधर- खामी ॥१०७॥ ॐ बेठा पछे, जाइये केटलो काल रे; पद्मनाभ जिन जब हुश्ये, ज्ञानी झाक झमाल रे ॥ श्रीमन्धर ॥२॥ छठेने आरे जे हुश्ये, ते तो प्राणीने पाप रे; शाता नहि एक.घडी, रविनां झाझा ताप रे ॥ श्रीमन्धर ॥३॥ ओछं ने आयु मणुअतणुं, मोटुं देवर्नु आयु रे, सुख भोगवता स्वर्गनां, सागर पल्योपम जाय रे ॥ श्रीमन्धर॥४॥ सरागी नर जे इमभणे, तुमे तारो भगवंत रे; आपेथी आपे तरो, एम सांभलो सुर नर संघरे ॥ श्रीमन्धर ॥५॥ | ढाल–६ थी- एहवी वात जीव ते सूत्र में सांभली रे, म करिश विषम विषाद;जो ते पूरव पुण्य पुरो कीधो नहीं रे, तो किहांथी पहोंचे आश; जिनजी किम मीले रे, भोलाइयुं वल वले रे प्राणीश्यु टल वले रे ॥ ए आंकणी ॥१॥ तुं सरागी प्रभु वैरागीमां वडोरे, किम तेडे तुं त्यांहा शागुण देखी तुज उपर क्रिपा करे रे, किम आवे प्रभु इहाय ॥ जिनजी० भोला प्राणी ॥२॥ चोल मजीठ सरीखो जिनजी साहिबो रे, जीव तुं तो गलीनो रंग; कटको काच तणो मुल तुजमें नहीं रे, जिनजी नगीनो नंग ॥ जिनजी० भोला प्राणी ॥३॥ भमर सरीखो भोगी श्री भगवंत । ***%ARASHTRA ॥१०७॥ For Private And Personal use only
SR No.020395
Book TitleJain Prachin Purvacharyo Virachit Stavan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotichand Rupchand Zaveri
PublisherMotichand Rupchand Zaveri
Publication Year
Total Pages411
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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