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श्रीगोडीपार्श्व.
श० १८
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ए आंकणी ॥ १ ॥ आज सुरतरु फलीयो आंगणे, आज प्रगटी मोहन वेलि; आज विछडीया वाला मिल्यां, आज अमघर हुइ रंगरोल | आज० ॥ २ ॥ आज अमघर आंबो मोरियो, आज वुठी सोवन धार; आज दुधे बुठा मेहुला, आज गंगा आवी घरबार ॥ आज० ॥ ३ ॥ आज गायो गोडी पूरधणी, श्रीसंघे कस्यो उच्छाहि; चौमासो कीधो चुपशुं, नगर ते महियाल मांहि ॥ आज० ॥ ४ ॥ चहु आण चावा चिहु खुटमां, तेमा मोटा सुजाणोजी होय; मेहदासशा डुलजी जाणीए, एहवा धरतिमा धणी नहीं कोय ॥ आज० ॥ ५ ॥ रामना राज्य तणीपरे, चलावे जगमां रीत; सोलंकी साथमां शोभता, विवेकी शावाघो सुविनीत ॥ आज० ॥ ६ ॥ प्रमाणीक वोहरो प्रतापशी, समर्थ राज का जने काम; भणशाली नाथो तिहां भलो, जेहने घर बहुला दाम ॥ आज० ॥ ७ ॥ संघवी लाधो ते जाणीये, लूणा मेता मांहि दोय; शेठमांहिं दीपो वखाणिये, वलि मनो मनजी जोय ॥ आज० ॥८॥ सारु पोटिलो जाणिये, तपगच्छ तिलक समान; मइयालनां महाजन शोभतां, दोलत करी दीपे वान ॥ आज० ॥ ९ ॥ श्री हीरविजय सूरीश्वरु, तस सुभवीजय कवि शीश; तेहना भाव विजय
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स्तवन !,