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________________ Shankan Acharya Sh Kailasagersuri Syamandi स्तवन श्रीगोडी- लगाररे ॥ साहमेघो॥२॥ तव वहेल हंकावीने चालीयो, आव्यो उजड गोडीपुर गामरेः तिहां पार्श्व.18 वाव्यकुवा सरोवर नहिं, नहिं महोल मंदिरना ठामरे॥साहमेघो०॥३॥तिहां वहेल थंभाणी चाले नहि, हवे शेठहुओ दीलगीररे; मुजपासे नथी कांइ दोकडा, कुणजाणे पराइ पीररे॥ साहमेघो०॥४॥तिहां रात पडी रवी आथम्यो, चिंतातुर थइने सुतोरे; साह मेघाभणी आवीने इमकहे, सुहणामां यक्ष एकांतो रे॥ साहमेघो०॥५॥ हवे सांभल मेघा हुँ कहुं,आ वासे गोडीपुर गामरे;माहरो देरासर करजे इंहा, उत्तम जोइ कोइ ठामरे ॥ साहमेघो० ॥ ६॥ तुंजाजे दक्षिण दिशिभणी, तिहां पड्युछे निलं छाणरे; तिहांकुओ उमटश्ये पाणीनो, वली प्रगटस्य पाणीनी खाणरे॥ साहमेघो०॥७॥पासेउग्योछे उज्ज्वल आकडो,ते हेठेले धनछे बहुलोरे;पुर्यो छे चोखातणो साथीओ,तिहां पाणीतणो कुओपहोलोरे॥साहमेघो॥८॥ ढाल-॥ ८ मी ॥ सीता ते रूपेरुडी ॥ ए देशी ॥ सलावट सीरोही गामे, तिहां रहेछे चतुरछे कामेहो शेठजी सांभलो; रोगछे तेहने शरीरे, नमण करिछांटे नीरहो शेठजी सांभलो॥ ए आं कणी॥१॥ रोग जाशेने सुखथाशे, बेठोइहां काम कमासेहो शेठ; ज्योतिष निमित्त जोवरावे, For Pale And Personal use only
SR No.020395
Book TitleJain Prachin Purvacharyo Virachit Stavan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotichand Rupchand Zaveri
PublisherMotichand Rupchand Zaveri
Publication Year
Total Pages411
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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