SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 204
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Acharya Sa Kasagara Samande श्रीगोडी- संवत् चौद बत्रीसमेरे लाल, कार्तिक शुदि बीज; भवी% थावरवारे स्थापियारे लाल, नरपति पाम्या स्तवन पार्श्व. रीज; भवी०॥सुणज्यो०॥३॥ एक विनंती काजलशा कहेरे लाल०,मेघाशाने वात भवी; नाणुं अमारूं| लेइकरी रे लाल, गयाहुता गुजरात; भवी%; ॥सुणज्यो०॥४॥तेधन तुमे किहां वावर्यो रेलाल, तेयो लेखो आज; भवी०; तवमेघो कहे शेठजीरे लाल, खरच्यां धर्मने काज; भवी०॥सुणज्यो० ॥५॥ स्वामीजी माटे रुपीआरे लाल, पांचस्ये दीधा दाम; भवी; काजल कहे तुमे स्युंकयुरेलाल, ए पथर र केणेकाम; भवी०॥ सुणज्यो०॥६॥काजल भणीमधो कहेरे लाल, ए व्यापारमांहि नतुम भाग; भवी०8 ते पांचवें शीरमाहरे रे लाल; तेहमां नहीं तुमभाग; भवी०॥ सुणज्यो॥७॥मेघाशानी भार्यारेलाल, मृघादे छे नाम; भवी०; मइओने मेरो सारिखोरे लाल, बिहुसुत रविय सामान; भवी० ॥सूणज्यो० ॥८॥ ___ ढाल-६ ठी॥ कंत तमाकु परिहरो ॥ ए देशी ॥ साह काजल मेघाभणी, बिहुँ जणमांही संवाद मेरेलाल; तिहां मेघो धनराजने, एकदीन कीधोसाद; मेरेलाल. सुणज्यो वात सोहामणी ॥ए आंकणी ॥१॥ आप्रतिमा पूजोतमे, भाव आणीने चित्त मेरेलाल बारवर्ष लगे तिहां पुज्या, पूजि For Fate And Personal use only
SR No.020395
Book TitleJain Prachin Purvacharyo Virachit Stavan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotichand Rupchand Zaveri
PublisherMotichand Rupchand Zaveri
Publication Year
Total Pages411
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy