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विविध वरणे चंद्रुआ किया ए, तोरण झाक झमाल महो० ॥ बालिभोलि सिणगार सजी ए, गावे गीत रसाल महो०॥ ८॥ स्नान मजन करावियां ए, भावतां कुंडल हार महो० ॥ वेढ विंटि बहेरखा ए, फुलमाला सहकार महो०॥९॥ मंगल तिलक मांडिकरे ए, आणि हरख अपार महो०॥ वरघोडे प्रभु संचरयां ए, वाजां वाजे मनोहार महो० ॥१०॥ राजकुमरि प्रभु परणीया ए, नामें यशोमती नार महो० ॥ ते साथे सुख अनुभवे ए, भोगवें भोग संसार महो० ॥११॥ चक्र स्वपन राणि ए दिदं ए, चक्रायुध लीए नाम महो०॥ देश विदेश सवि भरतनां ए, सांध्या षट् खंड खाम महो० ॥ १२ ॥ पून्य योगें सवि संपदा ए, ठामोठाम अनंत महो० ॥ विनयथी राज्य नीति पालतां ए, टालतां भव दुःख संत महो०॥ १३॥ जन्म कल्याणक सेवियें ए, लीजिएं सुख रसाल महो० प्रगटे क्षमा गुण ऋद्धि सिद्धी ए, तस घर मंगलमाल महो० ॥ १४ ॥ इति द्वितीयस्य जन्म कल्याणकयोः समाप्तम् ॥
दहा-पणविस सहस्स वरस भलां, पालतां राज्य उदार; संयम समय जणाववा, लोकांतिक
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