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Achan Kailas
Gyamandi
तणी क्रिया, उपधाने निरधार ए ॥ २६ ॥ तप गच्छ नायक सुमति दायक, श्री विजय प्रभ सूरीश ए: पुण्य प्रभाव अधिक दिन दिन, जगत माहि जगीश ए ॥ २७ ॥ श्री कीर्ति विजय उवझाय सेवक, विनय इणी परे विनवे; देवाधिदेवा धर्म एहवो, मुज दीयो भवे भवे ॥ २८ ॥
"इति श्री उपधान विधि स्तवनम् सम्पूर्णम्"
“अथ श्री समवसरण, स्तवन्" पिउजी पिउजी नाम जपुं दिन रातियां ॥ ए राग ॥ जायव कुल सिणगार, सिरि नेमीसर पाय नमी; समवसरण विचार, कहुं संखेवे गुरु भणीअ ॥१॥ तिथंकर रहे नाण, उप्पन्ने सवि इंद तिहिं; आवे अति बहुमाण, निअ निअ कम्म करंति विहें ॥२॥ पहेलो वायु कुमार, जोयण || लगे भूमी सारवे ए; टाले कयवर वार, पावरेणु निअ हारवे ए॥३॥ पछे मेहकुमार, कुंकुम कपूरोदकेही; बुठिकरिअ लह धार, रय उवस करंति तिहिं ॥४॥ आवी अग्निकुमार, धुप उगाहण
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