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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra शांतिना थना. www.kobatirth.org. पंक प्रभा धुम्र प्रभा, तम प्रभ तम तम ठांमरे ॥ श्री जिनवर ॥ ६ ॥ नरक साते एहिज सही, कर्म कठिन करे जोररे; जीव कर्म वश करे जुदा, उपजे तिण हियठोर रे ॥ श्री जिनवर ॥ ७ ॥ ॥ ७९ ॥ छेदन भेदन ताडना, भूख तृषा वली त्रास रे; रोम रोम पीडा करे, परमा धाम्मि तासरे ॥ श्री जिनवर ॥ ८ ॥ रात्रि दिवस क्षेत्र वेदना, तिलभर नवीतिहां सुख रे; कीयां कर्म तिहां भोगवें, पामें जिव बहु दुःखरे ॥ श्री जिनवर ॥ ९ ॥ इक दिन रे नवकारशि, जे करे भावथी शुद्धरे; सो वर्ष नरकनुं आउखुं, दूर करे ज्ञानी बुद्धिरे ॥ श्री जिनवर ॥ १० ॥ नित्य करे नवकारशी, ते नर नरकें नवी जायरे; न रहे पापवली पाछलां, निर्मल होवे तस काय रे ॥ श्री जिनवर ॥ ११ ॥ ढाल २– जी ॥ श्री विमलाचल शिर तिलो ॥ ए देशी ॥ सूण गौतम पोरसी कीयां, महा महोढुं फल होयरे; भावशुं जो पोरिसी करे, दूर्गति छेदे सोयरे ॥ सुण० ॥ ए आंकणी ॥ १२ ॥ नरक मांहे जीव नारकी, वर्ष एकेक हजाररे; कर्म खपावे नरकमें, करता बहुत पूकाररे | ॥ सू० ॥ १३ ॥ एक दिवसनी पोरसी, जीव करे एक वाररे; कर्म हणे सहस एकनां, For Pivate And Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पंच क० स्तवन. 1108 11
SR No.020395
Book TitleJain Prachin Purvacharyo Virachit Stavan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotichand Rupchand Zaveri
PublisherMotichand Rupchand Zaveri
Publication Year
Total Pages411
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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