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________________ SM Mahavam A kende www.kobateh.org. Acharya Sh Kailasagar Gyanmandi पंच क. स्तवन, शांतिना- तणी नववाडी कहाय, तिहांजे लागो दोष जणाय; त्रयने फरस हुआ अविवेके, एक आंबिल कीजे थना. प्रत्येके ॥ २४ ॥ साधु अने श्रावक प्रसीध, एकेंद्री संघट्टे कीध; वीसरभोले सचित्त जल पीध. दंड | ॥७३ एकासण आंबिल दीध ॥ २५॥ विण धोया विणलुह्या पात्र, एकासण तिम पुरिमढ्ढ मात्र; गड महपत्ती Kआंबिल सार, तिमओघे अट्टम अवधारो ॥ २६ ॥ च्यार आगार छ छीडी राखे, व्रत पञ्चक्खाण करे। षटसाखे, दोष, मिच्छादुक्कडं दाखे, आलोयण तेहने अभिलाषे ॥ २७॥ आलोयणानां अति विस्तार पूराकहेता नावे पारः तोपण संक्षेपे तस सार, निरमल मने करतां निस्तार ॥ २८ ॥ धन्य श्रीवीर जिणेसर खामि, जस आगम वचने विधी पामी; जीतकल्प ठाणांग आदि,वली परंपर गुरु सुप्रसाद ॥२९॥ | कलश-इम जेहधर्मी चित्त विरमी पाप सर्व आलोइनें, एकंत पूछे गुरु बतावे शक्ति वय तसजोपाइनें; विधि एह करशे तेह तरशे धर्मवंत तणे धुरं, ए स्तवन श्रीधर्मसीह कीधो चौपर्ने फलवृद्धि पुरे॥३०॥ "इति श्री आलोयण स्तवनम् सम्पूर्णम्” For Pale And Personal use only
SR No.020395
Book TitleJain Prachin Purvacharyo Virachit Stavan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotichand Rupchand Zaveri
PublisherMotichand Rupchand Zaveri
Publication Year
Total Pages411
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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