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________________ SM Mahavam A kende www.kobathrtm.org Achan Kailas Gyamandi SHASKAR खांतेरे; ध०॥ मिथ्या पुंज करे त्रणशोधी, उपशम करि शुभ बोधीरे; ध०॥३॥ शुद्धने अर्ध विशुद्धते बीजो, अविशुद्धे मत रीझोरे; ध० उपशमथी पडिओ मनवामे, क्षायोपशमिक पामरे;ध०॥४॥ मिश्र तथा मिथ्यात्वनें फरसे, कर्ममती इम हरषेरे; ध०॥ बीजुं क्षायोपशमिक कहीये, उपशम परेपण लहीयेंरे; ध०॥ ५॥ मिच्छा पुंज करी त्रण नीणे, कोई अपूर्व करणेरे; ध० शुद्ध पुंजतो तिहां वेदतो ज्ञानी, जिन वचनामृत पानीरे; ध०॥६॥ उपशम पाम्यांविण तुज नामे, क्षायोपशमिक पामेरे; ध०॥ यथा प्रवृत्ति करणत्रय क्रमथी, अंतरकरणे तुजथीरे; ध०॥७॥ जेलहें उपशम भवजल तरवा, तस त्रण पुंजन करवारे; ध०॥ आलंबन अलहंती ईयल, जिमसठाणं न मूकेरे; ध०॥८॥ मिश्र पुंज अणलाभी उपशमी, तिम मिथ्याने ढांकेरे; ध० ॥ उपशम समकीतथी तिणे पडिओ, जइ मिथ्या गुण अडिओरे; ध०॥९॥ इम सिद्धांती निज मत खोलें, कला भाष्यपण बोलेरे; ध०॥ ते त्रण पुंजनो संक्रम भाखं, जिनवयणे मन राखुंरे; ध०॥१०॥ मिथ्या दलिकथी पुद्गल खिंची, समकित दृष्टि विंचीरे; ध०॥ संक्रमावे समकित मीसें, शुभ परीणामें हीसेरे; ध०॥ ११ ॥ समकीत 25% For Pale And Personal use only
SR No.020395
Book TitleJain Prachin Purvacharyo Virachit Stavan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotichand Rupchand Zaveri
PublisherMotichand Rupchand Zaveri
Publication Year
Total Pages411
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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