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( ७ ) माना जाएगा। न्याय के विद्यार्थियों के लिए भी विशेष उपयोगी और संग्रहणीय होगा।
__ मूल ग्रन्थ जितना महत्त्वपूर्ण है, इसका परिशिष्ट उतना ही उपयोगी और ज्ञानवर्धक बन गया है ।
नय-निक्षेप-प्रमाण के ज्ञान सागर को इस छोटी-सी गागर में भरने की कुशलता के लिए दर्शनशास्त्र का पाठी मुनिश्री जी को बहुत-बहुत धन्यवाद देगा।
___ मुनिश्री ने अतीव स्नेह एवं उदारतापूर्वक इस ग्रन्थ के प्रकाशन का सम्पूर्ण दायित्व 'दिवाकर प्रकाशन' को प्रदान किया है। हम आपश्री के अत्यन्त आभारी चिर कृतज्ञ रहेंगे ।
प्रकाशन में उदारता पूर्वक अर्थ सहयोग देने वाले धर्म बन्धुओं का भी हम आभार मानते हैं ।
--श्रीचन्द सुराना 'सरस'
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