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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रात्मक जैन न्याय ग्रन्थ .......................... परीक्षामुख सूत्र जैन न्याय के सूत्रात्मक ग्रन्थों में प्रथम गणना परीक्षा- मुख की होती है | आचार्य माणिक्यनन्दि ने रचना की है। जैन परम्परा के महान् नैयायिक अकलंक देव के न्याय ग्रन्थों का दोहन करके यह ग्रन्थ लिखा गया है । छह समुद्देशों में विभक्त हैं । सूत्र रचना सुन्दर तथा मधुर है । गागर में सागर भर दिया है । यह प्रमाण बहुल ग्रन्थ है । प्रमाण, प्रमाण का फल, प्रमाणाभास, प्रमाण का प्रमाणत्व, प्रमाण का विषय, प्रमाण के भेद-प्रभेद आदि विषयों का विस्तृत वर्णन किया है । लेकिन नय, निक्षेप और वाद आदि महत्वपूर्ण विषयों की उपेक्षा भी की गई है । अनन्तवीर्य आचार्य ने परीक्षामुख के सूत्रों पर मध्यम परिमाण की संस्कृत टीका की है । टोका प्रमेयबहुल है । अतः उसका नाम है— प्रमेय रत्नमाला । आचार्य प्रभाचन्द्र ने सूत्रों पर अति विशाल तथा महाकाय aar लिखी है, जिसका नाम है - प्रमेय कमल मार्तण्ड | यह ग्रन्थ महत्व - पूर्ण है । न्याय-वैशेषिक, सांख्य-योग, मीमांसा - वेदान्त, बौद्ध और चार्वाक का जोरदार खण्ड किया है । केवली भुक्ति और स्त्री मुक्ति का विस्तार से खण्डन किया है । ईश्वरवाद, प्रकृतिवाद, अद्वैतवाद और विज्ञानवाद पर चोट की है । प्रमाण-नय-तत्त्वालोकालंकार सूत्र वादिदेव सूरि कृत यह विशुद्ध न्यायग्रन्थ है | आठ परिच्छेदों में विभक्त किया है । इसका भाषा सौष्ठव देखने योग्य है | सूत्र लम्बे हैं, ( ४९ ) For Private and Personal Use Only
SR No.020394
Book TitleJain Nyayashastra Ek Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni
PublisherJain Divakar Prakashan
Publication Year1990
Total Pages186
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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