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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भारतीय दर्शनों का संक्षिप्त परिचय : ३३ वेदान्त-दर्शन उत्तरमीमांसा को वेदान्त कहा गया है। वेदों का अन्त वेदान्त होता है। उसका मुख्य ग्रन्थ वादरायण कृत ब्रह्म-सूत्र है। इसमें वेद के सार उपनिषदों के ज्ञान की मीमांसा अर्थात् विचारणा की है। वेदान्त उपनिषदों के तत्त्व ज्ञान पर निर्भर करता है। उनका आधार और यथार्थ तत्व ब्रह्म है, जो अखण्ड, एक रस और अद्वत है। उपनिषदों के वाक्यों की अर्थसंगति अर्थात् समन्वय करने के लिए ब्रह्म-सूत्र की रचना की है। ब्रह्मसूत्र, वेदान्त-सूत्र और बादरायण-सूत्र-ये तीनों एक ही हैं । उपनिषद्, गीता और ब्रह्मसूत्र की वेदान्त संज्ञा है । वेदान्त के सम्प्रदाय पूर्वमीमांसा के दो सम्प्रदाय हैं-भाट्ट और प्राभाकर । वेदान्त के पाँच सम्प्रदाय हैं-- अद्वैत, विशिष्टाद्वैत, द्वैताद्वैत, द्वैत और शुद्धाद्वैत । क्रमशः इनके प्रवर्तक आचार्य हैं-शंकर, रामानुज, निम्बार्क, माध्व और वल्लभ । शंकर शैव सम्प्रदाय के हैं, और शेष चार वैष्णव सम्प्रदाय के हैं। वैष्णव आचार्य भक्तिमार्गी हैं । भक्त भक्ति से भगवान् का सामीप्य एवं सान्निध्य प्राप्त करता है । भक्तिमार्ग, एक सीधा और सरल मार्ग है । वेदान्त का साहित्य वेदान्त का साहित्य विशाल एवं व्यापक है। प्रस्थानत्रयी मुख्य साहित्य है। फिर विभिन्न भाष्य हैं, जैसे शारीरक भाष्य एवं श्रीभाष्य आदि । शांकर भाष्य पर भामती,उस पर कल्पतरु, फिर कल्पतरु पर परिमल । अद्वै तसिद्धि, पञ्चदशी, वेदान्त परिभाषा और वेदान्त-सार आदि ग्रन्थ प्रसिद्ध हैं। शंकर का अद्वैतवाद सामान्यजन वेदान्त से शंकर का अद्वैतवाद ही समझते हैं। शंकर का कथन है, कि परिवर्तनशील संसार का यथार्थ तत्व ब्रह्म है। जगत् असत्य और भ्रम मात्र है। मायावाद भी शंकर का ही एक अति प्रसिद्ध सिद्धान्त है। ब्रह्मवाद और मायावाद दोनों परस्पर सम्बद्ध माने जाते हैं। वेदान्त का एक मुख्य सिद्धान्त-ब्रह्म सत्य, जगत् असत्य है, नानात्व, भ्रम मात्र है, सर्वत्र एकत्व है। भारतीय दर्शनों में कारणवाद को लेकर दीर्घकाल से विवाद रहा है । सांख्य सत्कार्यवाद को मानता है । कार्य उत्पन्न नहीं होता, अव्यक्त से For Private and Personal Use Only
SR No.020394
Book TitleJain Nyayashastra Ek Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni
PublisherJain Divakar Prakashan
Publication Year1990
Total Pages186
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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