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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir .. .. .. .. .... .. ... .... ... निक्षेप-सिद्धान्त ................. मनुष्य अपने विचारों को अभिव्यक्त करने के लिए भाषा का प्रयोग करता है। बिना भाषा के अथवा बिना शब्द प्रयोग के वह अपने विचारों की अभिव्यक्ति भली-भाँति नहीं कर पाता । पशु की अपेक्षा मनुष्य की यह विशेषता है, कि वह अपने विचारों की अभिव्यक्ति भाषा के माध्यम से कर लेता है। यह एक सत्य है, कि जगत् का कोई भी व्यवहार, बिना भाषा के चल नहीं सकता। अतः परस्पर के व्यवहार को सुचारु रूप से चलाने के लिए भाषा का सहारा और शब्द प्रयोग का माध्यम मनुष्य को पकड़ना पड़ता है। संसार में हजारों प्रकार की भाषाएँ हैं, और उन भाषाओं के शब्द हजारों ही प्रकार के हैं। प्रत्येक भाषा के शब्द अलगअलग ही होते हैं। भाषा के ज्ञान के लिए शब्द ज्ञान आवश्यक है, और शब्द ज्ञान के लिए भाषा-ज्ञान भी आवश्यक है। भाषा अवयवी है, और शव्द उसके अवयव हैं। व्याकरण शास्त्र के अनुसार अवयवी के ज्ञान के लिए अवयव का ज्ञान परमावश्यक होता है। भाषा-ज्ञान के लिए शब्दों का ज्ञान भी नितान्त आवश्यक होता है। हम किसी भी भाषा का उचित प्रयोग तभी कर सकेंगे, जब कि उसके शब्दों का उचित प्रयोग करना हम सीख लेंगे। किस समय पर और किस स्थिति में, किस शब्द का प्रयोग कैसे किया जाता है, और वक्ता के अभिप्राय को कैसे समझा जाता है ? यह एक बहुत बड़ा सिद्धान्त है । शब्द प्रयोग के आधार पर वक्ता के अभिप्राय को ठीक रूप में समझ लेना, जैन दर्शन में, निक्षेपवाद कहा जाता है । निक्षेप का दूसरा नाम, न्यास भी है । निक्षेप और न्यास को जैन दर्शन में बड़ा महत्व मिला है । निक्षेप सिद्धान्त को समझने के लिए भाषा के शब्दों को और उन शब्दों के अर्थों को ठीक For Private and Personal Use Only
SR No.020394
Book TitleJain Nyayashastra Ek Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni
PublisherJain Divakar Prakashan
Publication Year1990
Total Pages186
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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