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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ११८ | जैन न्याय - शास्त्र : एक परिशीलन Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५. पञ्चम भंग - कथंचित् घट है, लेकिन वह अवक्तव्य है । ६. षष्ठ भंग - कथंचित् घट नहीं है, लेकिन अवक्तव्य है । ७. सप्तम भंग - कथंचित् घट है, नहीं है, लेकिन अवक्तव्य है । १. विधि २. निषेध ३. विधि - निषेध उभय ५. विधि, अवक्तव्य ७. विधि, निषेध, अवक्तव्य | सप्तभंगी दो प्रकार की है-सकलादेश और विकलादेश । प्रमाण सप्तभंगी और नय सप्त भंगी । इस प्रकार जैन तर्क भाषा में, प्रमाण और प्रमाणाभास, नय और नयाभास, सप्तभंगी, संक्षेप में इनका वर्णन किया है । निक्षेपों का भी वर्णन किया है । परीक्षा-मूख में नय ४. अवक्तव्य ६. निषेध, अवक्तव्य दिगम्बर परम्परा के प्रसिद्ध नैयायिक आचार्य माणिक्यनन्दी - कृत सूत्रात्मक न्याय ग्रन्थ परीक्षामुख, एक सुन्दर कृति है । उस पर एक विशाल भाष्य है, प्रमेय कमल मार्तण्ड । यह आचार्य प्रभाचन्द्र की कृति है । उस पर एक लघु टीका है, आचार्य अनन्तवीर्य विरचित प्रमेय-रत्न माला । प्रस्तुत ग्रन्थ में वैदिक और बौद्ध न्याय का अनुसरण किया है । जिस प्रकार आचार्य कुन्दकुन्द के ग्रन्थों पर वेदान्त और सांख्य का प्रभाव है, उसी प्रकार परीक्षामुख ग्रन्थ पर भी प्राचीन वैदिक न्याय तथा बौद्ध न्याय पद्धति का प्रभाव परिलक्षित होता है । क्योंकि धर्मकीर्तिकृत न्यायबिन्दु के सूत्रों का इस पर प्रभाव है । बोद्ध न्याय में हेतु मुख तथा न्याय मुख जैसे मुखान्त ग्रन्थ हैं, माणिक्यनन्दी ने उन्हीं का अनुसरण किया है । परीक्षामुख में, प्रमाण और प्रमाणाभासों का लम्बा और विस्तृत वर्णन किया गया है । किन्तु नय, निक्ष ेप और वाद के विषय में, वर्णन नहीं किया गया । मूल सूत्रों में उनका उल्लेख तक भी नहीं किया, जबकि जैन दर्शन के ये विशेष विषय समझे जाते हैं । प्रमेयरत्नमाला में, इस कमी की पूर्ति का प्रयास किया गया है। परीक्षामुख का आधार आचार्य अकलंक देव के लघीयस्त्रय, न्याय-विनिश्चय, सिद्धिविनिश्चय और प्रमाण संग्रह आदि ग्रन्थ माने जाते हैं । आचार्य अकलंक देव जैन न्याय ही नहीं, समग्र भारतीय न्याय के परम विद्वान् थे । नयों के भेद आचार्य अनन्तवीर्य ने प्रमेयरत्नमाला में, नयों के मूल भेद दो For Private and Personal Use Only
SR No.020394
Book TitleJain Nyayashastra Ek Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni
PublisherJain Divakar Prakashan
Publication Year1990
Total Pages186
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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