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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११: | जैन न्याय-शास्त्र : एक परिशोलन हैं। संयोगवश इस प्रकार के ग्रन्थों का अब अध्ययन एवं अध्यापन होने लगा है। जैन तर्क भाषा में, पाँच ज्ञान और चार निक्षेपों का जो वर्णन उपाध्याय यशोविजयजी ने किया है, उसका मूल आधार विशेषावश्यक भाष्य है। प्रमाण और नयों का प्रतिपादन, प्रमाणनयतत्त्वालोक तथा स्याद्वाद रत्नाकर के आधार पर है । जैम तर्क भाषा की मुख्य विशेषता यह है, कि इस में आगमिक और तार्किक दोनों परम्पराओं का सुन्दर समन्वय समूपलब्ध होता है । यह ग्रन्थ संक्षिप्त होने पर भी अपने प्रतिपाद्य विषय का काफी स्पष्टीकरण करता है। यह इस की मुख्य विशेषता है । ___ नयवाद जैन दर्शन की मौलिक देन है । इस का मुख्य सम्बन्ध व्यवहार के साथ है। मनुष्य एक ही वस्तु को स्वार्थ के आधार पर विभिन्न दृष्टिकोण से देखता है। एक ही व्यक्ति को मुख्य रूप में मनुष्य, ब्राह्मण, देवदत्त और अध्यापक आदि शब्दों द्वारा प्रकट किया जाता है । काव्यशास्त्र में शब्द की अभिधा के अतिरिक्त लक्षणा एवं व्यञ्जना को भी माना गया है। जैन दर्शन में सामान्यग्राही तथा विशेषग्राही दृष्टियों का विभाजन नयों में है। नयों के भेद __ श्रुत प्रमाण के द्वारा गृहीत अनन्तधर्भात्मक वस्तु के एकदेश धर्म को ग्रहण करने वाला, किन्तु उस गृहीत धर्म से इतर धर्मों का निषेध या विरोध न करने वाला अभिप्राय नय कहा जाता है। प्रमाण अनन्त धर्मात्मक समस्त वस्तु का ग्राहक होता है, जबकि नय केवल एक धर्म को ग्रहण करता है । इस कारण नय, प्रमाण का एक अंश है । जैसे कि सागर का एक अंश, न सागर कहा जा सकता है, और न असागर ही कहा जा सकता है, जैसे ही नय, न प्रमाण है, और न अप्रमाण, वह तो केवल प्रमाण का एक अंश भर ही हो सकता है। नय के दो भेद हैं-द्रव्याथिक नय और पर्यायाथिक नय । प्रधान रूप से केवल द्रव्य को ग्रहण करने वाला द्रव्याथिक है, और प्रधान रूप से पर्याय मात्र को ग्रहण करने वाला पर्यायाथिक है। द्रव्याथिक नय के तीन भेद हैं-नैगम, संग्रह और व्यवहार । पर्यायार्थिक के चार भेद हैं-ऋजुसूत्र, शब्द, समभिरूढ़ और एवंभूत नय । लेकिन जिनभद्रगणि क्षमा-श्रमण के मत से ऋ जुसूत्र नय, द्रव्याथिक नय For Private and Personal Use Only
SR No.020394
Book TitleJain Nyayashastra Ek Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni
PublisherJain Divakar Prakashan
Publication Year1990
Total Pages186
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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