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________________ जैन लिंग निर्णय // घांधना वा कपालमें बांधना इत्यादि अर्थात् किसी में न आया तो फिर साधु को मुख बांधकर विचरना वा ग्रहस्थियों को मुख बांधना और इस मुख बांधने की थापना करना जिन आज्ञासे विरुद्ध इसलिये इस अज्ञानको छड़ो कुमतको क्यों मंडो जैन मतको क्यों भंडो हम तुमको देते हैं प्रमाण मुंहपत्ती बांधना येही तुम्हारा अज्ञान आत्माका हित करना होयतो कहना हमारा मान समझ ले गुरूज्ञान जिसमें होवे तेरा कल्याण इतना कहने से फिर मुंहपत्ती बांधने वाले कहते है कि जिस वक्त में भरत राजा को आरसी महल में केवलज्ञान उत्पन्न हुवा था उस वक्त देवताने ओघा मोहपत्ती दीनी थी उस वक्त मोहपत्ती बांधकर रानियों के महल में होकर निकसा उस वक्त में मुंह की मोहपत्ती देख कर अनार्य देश की राणी हंसने लगी कि आज राजा क्या स्वांग लाया है और आयदेश की राणी रोने लगी कि हाय राजातो साधु होगया इसलिये ऐकांत मत तानो कुछ हमारी भी बात मानो उत्तर भोदेवानु प्रिय! ये तेरा मनोकल्पित गाल बजाना है क्योंकि देखो जंबूद्वीप पन्नोती में भरत के अलावेसे पाठ दिखाते हैं तुम्हारे कल्याल के वास्ते बारंवार समझाते हैं तुम्हारा मिथ्यात्व गमाते हैं तुम अपने आपही नाहक क्यों उलझाते हो। ___पाठः-तएणंतस्स भरहसरणो सुभेणपरिणामेणं पसथ्थे हिंअझवसाणेहि ले साहिवसुझमाणाहिं इहापोहमगण गवेसण करेमाणस्त तयाविरणीजाणकम्माणंखएणं कम्मरयविकरणं करिअप्पुवकरणंपविठस्स भणतेअणुत्तरे निव्वाघाए तिरावर णेकप्तणे पडिपुन्ने केवलवरणाणदंसणेसमुपन्ने तएणसेभरहे केवमी सयमेव अभरणाअलंकारं मुययइश्त्ता सयमेवपंचमुठि यंलोयंकरीतिरत्ता आदंसघराउ पडिनिखमइरत्ता अंतेउरम झं मझेणं निगच्छइयत्ता दससहिरायवरसहसेहि सद्धिंसंपरिबुडे विणीयंरायहाणि मझमझणं निगछ्छइरत्ता मझदेसेसुहंसुहेणं विहरइरत्ना॥
SR No.020393
Book TitleJain Ling Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages78
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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