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________________ [4.] जैन लिंग निर्णय // सोमिल एवंवयासि जहणं तुम्मदेवाणुप्पिया इयाणिपुठवपडि पाइ पंच अणुव्वया सत्तसिखावयाई दुवालस्सविहं गीहंधम्म सयमेव उवसंपज्जिनाणं विहरतितोणतुम्हंइंदाणि सुपवाइयं भविज्जा // ततण सलोमिलेमाहणारिसि तेणं देवेणं अतियंएय महं सच्चापव्वेषडिवन्नाइं पंचाणुव्वयाई जावसयमेव उवसंप जिजताणं विहरति ततणसेदेवेसाठवइयं पडिपन्नेजाणित्ता तंदेवेप्लोमिलाइनमसति जामेवदिसंपाओभया तामेवदिसंप डिगया ततेणंसोमिलं माहणरिसि तेणं देवेणं एवंवृत्तासमाणे पुविपडिवन्नाइ पंचअणुवयाइ सयमेव उवसंपज्जित्ताणविह रति ततेणसोमिने बहुहि च उधमजावमासद्धमासखमणे हिंविचतेहिं तबोवाहाणेहिंविचतेहिंअप्पाणंभावेमाणे वहूहिवा साहि समोवासगपरियाई अद्धमासियाए सलेहणाए अत्ताण भसतिरतीसंभत्ताइ अणसणाएछदित्ता तस्सहाणस्स अणालो इए अपडिक तेवीराहिये सम्मतेकालमासेकालेंकिच्चासकपर्डि सए विमाणे उववाएसभाए देवसयणिज्जसिजावतो उगाह ण ए सुक्के महागाहत्ताए उववणेततेणं सेसुकेमहाग्गहे अहणाव वन्नेसमाणे जावभासामणपज्जतिए एवंखलुगे हागणंसादिव्याजावअभिसमणागता एगंपलिमोवमंदिइस केणंभंते महाग्गहे ताउ देवलोगाउआउखएणकएणंकहिं गए गोयमा महाविदेहेवाससिझहिति एवंखलुजंबुसमणेणं निखे वेतनरयावलका सत्र मध्ये अध्येनजोइ ले जो॥ अर्थः- प्रभात समय जिस समय में सूर्य उदय हुवे के बाद बहुत तापसी अर्थात् संन्यासी लोगों की अनुमति अर्थात् आज्ञा लीनी बीटा मत के संन्यासी थे उनकी और अपनी निश्चय करके काष्ठकी मुंहपत्ती से अपना मुख बांधकर इस रीति का अवगह लेता हुवा कि जल के विष थल के विषे अथवा पहाड का चढ़ना अथवा पहाड़ से नीचे उतरणा अथवा बिसन अर्थात् खाड़ा आदि अथवा | गुफा आदि के विषे फिसलना अर्थात् डिगमगाकर पगादिक से
SR No.020393
Book TitleJain Ling Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
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Publisher
Publication Year
Total Pages78
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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