________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www. kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
नागरीप्रचारिणी पत्रिका ___ अति पराक्रमी चंद्रगुप्त ने सिलीकस नामक यव । राजा के साथ मित्रता करके अपने राज्य का विस्तार किया और अपने राज्य में मौर्य संवत्सर स्थापित किया।
भगवान महावीर से १८४ वर्ष व्यतीत होने पर चंद्रगुप्त का स्वर्गवास हुआ और उसका पुत्र बिंदुसार पाटलिपुत्र के राज्यासन पर बैठा। बिंदुसार भी जैनधर्म का पाराधक परम श्रावक था। उसने २५ वर्ष तक राज्य किया और वोर निर्वाण से २० वर्ष के बाद वह धर्मी राजा स्वर्गवासी हुआ।
निर्वाण से २०६ वर्ष के अंत में बिंदुसार का पुत्र अशोक पाटलिपुत्र के राज्यासन पर बैठा। अशोक पहले जैनधर्म का अनुयायी था, पर राज्यप्राप्ति से ४ वर्ष के बाद उसने बौद्धधर्म का पक्ष किया, और अपना नाम "प्रियदर्शी', २ रखकर वह बौद्ध धर्म की आराधना में तत्पर हुआ ।
अशोक बड़ा पराक्रमी राजा था। उसने अपने अतुल पराक्रम से पृथिवी मंडल को जीतकर कलिंग, महाराष्ट्र, सौराष्ट आदि देशों को अपने अधीन किया और वहाँ बौद्ध धर्म का विस्तार करके अनेक बौद्ध विहारों की स्थापना की; पश्चिम पर्वत तथा विंध्याचल आदि में चौद्ध श्रमण
(१) महावंश आदि बौद्ध ग्रंथों से भी इस बात की पुष्टि होती है । वहाँ लिखा है कि ३ वर्ष तक अशोक अन्यान्य दर्शनों को मानता रहा और पीछे से वह बौद्धधर्मो हो गया।
(२) अशोक के प्रसिद्ध शिलालेखों में सर्वत्र इस "प्रियदर्शी" नाम का ही व्यवहार किया गया है। केवल 'मस्की' के एक शिलालेख में "देवानंपियस असोकस" इस प्रकार 'अशोक' नाम का व्यवहार किया गया है।
For Private And Personal Use Only