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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०० नागरीप्रचारिणी पत्रिका उद्धार का उल्लेख भी खारवेल के ही लेख में पाया जाता है । खारवेल के पुत्र वक्रराय और पौत्र विदुहराय के नाम भी कलिंग के उदयगिरि पर्वत की गुफा में पाए गए हैं और खारवेल के आदि-पुरुष चेटक का नाम भी उसके लेख के प्रारंभ में दृष्टिगत हो रहा है। मौर्यराज्य की दो शाखा होने के संबंध में पुरातत्त्वज्ञों ने पहले ही अनुमान कर लिया था, जिसको थेरावली के लेख से समर्थन मिला है। स्कंदिलाचार्य के सिद्धांतोद्धार का उल्लेख नंदीचूर्णि प्रादि अनेक प्राचीन ग्रंथों में मिलता ही है, गंधहस्ती के सूत्र विवरणों के अस्तित्व का साक्ष्य शीलांक की प्राचारांग टीका दे रही है और उनकी तत्त्वार्थ-भाष्य रचना के विषय में भी अनेक मध्यकालीन (१) हाथीगुफा लेख की १६वीं पंक्ति में अंगों का उद्धार करने के संबंध में उल्लेख है, ऐसा विद्यावारिधि के० पी० जायसवालजी का मत है। अापके वाचनानुसार वह उल्लेख इस प्रकार है "मुरियकालवोछिनं च चोयटि-अंग-सतिकं तुरियं उपदियति [I]'' अर्थात् मार्यकाल में विच्छेद हुए चोसहि ( चौसठ अध्यायवाले ) अंगसप्तिक का चौथा भाग फिर से तैयार करवाया । पर मैं इस स्थल को इस प्रकार पढ़ता हूँ "मुरियकाले वोछि ने च चोयटिअग-सतिके तुरियं उपादयति []" अर्थात् मौर्यकाल के १६४ वर्ष के बीतने पर तुरंत (खारवेल ने) उपयुक्त कार्य किया। (२) गंधहस्तिकृत सूत्रविवरण अब किसी जगह नहीं मिलते, संभवतः वे सदा के लिये लुप्त हो गए हैं, पर ये विवरण किसी समय विद्वद्भोग्य साहित्य में गिने जाते थे इसमें कोई संदेह नहीं है । विक्रम की दशवीं शताब्दी के पूर्वाद्ध की कृति प्राचारांग टीका में उसके कर्ता शीलाचार्य गंधहस्तिकृत विवरण का उल्लेख इस प्रकार करते हैं For Private And Personal Use Only
SR No.020391
Book TitleJain Kalganana Vishayak Tisri Prachin Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay
PublisherKalyanvijay
Publication Year
Total Pages32
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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