________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www. kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
६४
नागरीप्रचारिणी पत्रिका कथाओं में यह लिखा गया है कि कालक ने 'पारिसकुल में जाकर वहाँ के साहि अथवा शाखि नामधारी १६ राजा को हिंदुस्तान में लाकर गर्दभिल्ल के ऊपर चढ़ाई करवाई', तब इसमें इस प्रसंग में इतना ही कहा है कि 'सिंधु देश में सामंत नामक शक राजा राज्य करता था, उसके पास कालक गए और उसे उज्जयिनी पर चढ़ा लाए।' इस लड़ाई में गर्दभिल्ल मारा जाता है, उज्जयिनी पर शक राजा अधिकार करता है और सरस्वती को फिर दीक्षा देकर कालक भरोच की तरफ विहार करते हैं। कालांतर में गर्दभिल्ल का पुत्र विक्रमादित्य शक राजा को जीत कर उज्जयिनी का राज्य अपने हाथ में कर लेता है, यह बात थेरावली के शब्दों में नीचे लिखी जाती है। ___ "उसके बाद गर्दभिल्ल का पुत्र विक्रमार्क शक राजा को जीतकर महावीर-निर्वाण से चार सौ दस वर्ष बीतने पर उज्जयिनी के राज्यासन पर बैठा।।
विक्रमार्क प्रति पराक्रमी, जैनधर्म का प्राराधक और परोपकारनिष्ठ होने से प्रत्यंत लोकप्रिय हो गया।" ___ यहाँ पर विक्रमार्क-राज्यारंभ वीर-निर्वाण संवत् ४१० के अंत में लिखा है और मेरुतुंग की विचार-श्रेणि प्रादि के अनुसार विक्रमादित्य ने ६० वर्ष तक राज्य किया था, इस हिसाब से विक्रमादित्य का मरण निर्वाण से ४७० वर्ष के बाद हुआ। प्राचार्य देवसेन, अमितगति आदि जो विक्रम मृत्युसंवत् का उल्लेख करते हैं उसका खुलासा इस लेख से स्वय हो जाता है। वीर और विक्रम का अंतर ती ४७० वर्ष का ही है पर प्रस्तुत परंपरा के अनुसार
For Private And Personal Use Only