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जैन काल-गणना
१ कर भोजपत्र, ताड़पत्र और वल्कल पर अक्षरों से लिपिबद्ध करके भिक्खुराय का मनोरथ पूर्ण किया और इस प्रकार वे प्रार्य सुधर्म-रचित द्वादशांगी के संरक्षक हुए। ___ उसी प्रसंग पर श्यामाचार्य ने निग्रंथ साधु साध्वियों के सुख बोधार्थ ‘पन्नवणा सूत्र' की रचना की। __ स्थविर श्री उमास्वातिजी ने उसी उद्देश से नियुक्ति सहित 'तत्वार्थ सूत्र' की रचना की।
स्थविर आर्य बलिस्सह ने विद्याप्रवाद पूर्व में से 'अंगविद्या' आदि शारों की रचना की।
इस प्रकार जिनशासन की उन्नति करनेवाला भिक्खुराय अनेकविध धर्म कार्य करके महावीर-निर्वाण से ३३० वर्षों के बाद स्वर्गवासी हुमा।
भिक्खुराय के बाद उसका पुत्र वक्रराय कलिंग का अधिपति हुप्रा।
वक्रराय भी जैनधर्म का अनुयायी और उन्नति करने
(१) श्यामाचार्य कृत 'पनवणा सूत्र' अब तक विद्यमान है।
(२) उमास्वाति कृत 'तत्वार्थ सूत्र' और इसका स्वोपज्ञ भाष्य अभी तक विद्यमान है। यहाँ पर उल्लिखित 'नियुक्ति' शब्द संभवतः इस भाष्य के ही अर्थ में प्रयुक्त हुअा जान पड़ता है।
(३) अंगविद्या प्रकीर्णक भी हाल तक मौजूद है। कोई नौ हजार श्लोक प्रमाण का यह प्राकृत गद्य पद्य में लिखा हुआ 'सामुद्रिक विद्या' का ग्रंथ है।
(४) कलिंग देश के उदयगिरि पर्वत की मानिकपुर गुफा के एक द्वार पर खुदा हुआ वक्रदेव के नाम का शिलालेख मिला है जो इसी चक्रराय का है । लेख नीचे दिया जाता है
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