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जिनगुणहीरपुष्पमाला
कुंथुजिन मेरी भवभ्रमणा, मिटा दोगे तो क्या होगा-ए राग चोराशी लाख योनिमे, प्रभु मे नित्य रूलता हुँ । दयालु दासको तेरे, बचा लोगे तो क्या होगा। कुंथु०१ घटा घन मोहकी आई, छटा अंधेरकी छाई ।। प्रकाशी ज्ञानवायुसे, हटा दोगे तो क्या होगा ॥ कुंथु० २ अहो प्रभु नामका तेरे, सहारा रातदिन चाहुं । समी प्रेम अन्तरका, विकासोगे तो क्या होगा । कुंथु०३ नही हे काम सोनेका, नहीं चांदी पसंद मुजको।। चहुं मे आत्मकी ज्योति, दिखा दोगे तो क्या होगा कुंथु०४ सच्ची मे देवकी सुरत, तुम्हारेमें निहाली है । लगा हे प्रेम इस कारण, निभालोगे तो क्या होगा ।।कुंथु०५ कमल जैसा तेरा मुखडा, देखा छाया पुरी मांही । बना लब्धि भ्रमर इस्मे, छुपा लोगे तो क्या होगा ।कुंथु०६
गजल कव्वाली-चाहे बोलो या न बोलो सेवक तो हो रहा हूं, चाहे तारो या न तारो । जिन पदम प्रभुजी स्वामी, हो आप शिव गति गामी। चर्णोमे लेट रहा हुं, चाहे तारो या न तारो । से० ॥१॥
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