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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २२ जिनगुणहीरपुष्पमाला छोड्या धर्म नेम व्रत सर्व खाये धर्मादा देवद्रव्य; छोड्या धर्म तिथी ने पर्व, परनारीको फसाने वाले हम० भुल्या विनय विवेक विचार, ज्यां त्यां करता भ्रष्टाचार; गर्दभ कुकरना अवतार, ब्रधरहुड बनाने वाले हम० ६ काम क्रोध मदमां चकचूर, नख शिख अपलक्षण भरपूर; गुमान्युं मुखडां केरुं नूर, ज्यां त्यां धूल उडाने वाले हम० रामायण से अपरंपार, सुणतां थाके नर ने नार; कामां छे सघला सार, शिवधर्म समजाने वाले हम० ८ ( २७ ) ( गजल कव्वाली. ). मे अरज करूं शिरनामी, प्रभु कर जोड जोड जोड । ए आं० में भव बनमें जा फसिया, वहां काल करि धसमसिया; मुझ लोभ सर्प आ डसिया, अखियां खोल खोल खोल १ क्रोधाने अति बाला, मेरा अंग पड गया काला; मुझे प्यादे प्रेमका प्याला, अमृत ढोल ढोल ढोल २ मद अजगर मुझको खावे, मेरे प्राण पलक मे जावे : जडी जीवन कोण पिलावे, वन मे घोल घोल घोल ३ For Private and Personal Use Only
SR No.020387
Book TitleJain Gajal Manohar Hir Pushpmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorH P Porwal
PublisherJain Parmarth Pustak Pracharak Karyalay
Publication Year1928
Total Pages49
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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