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वीतरागाय नमः।
संक्षिप्त विवर्णइ स प्रसिद्ध भारतभूमि में सन् ईसा के अनेक वर्ष HAR* पूर्व " इतुकार" नाम की एक प्रसिद्ध नगरी थी। उसके चारों ओर खाई युक्त कोट था । कोटकी रक्षा के लिये छोटे २ किले बने हुए थे । खाई बड़ी गहरी और चौड़ी थी, जो कि स्वच्छ जल से सदैव पूर्ण भरी रहती थी। नगरी में प्रवेश करने के लिये चार दरवाजे थे, उन दरवाजों पर रक्षक लोग सदैव रक्षाके लिये नियत रहते थे। नगरी के मध्य चौक में राजा के बडे २ विशाल महल बने हुए थे । उन महलों से कुछ श्रागे श्रास पास धनिक लोगों के रंग रंगीले सुन्दर गृह और दुकाने श्रेणी बद्ध बनी हुई थीं, जिनकी अद्भुत सुन्दरता देख दर्शक का मन सहसा उनकी ओर आकर्षित हो जाता था। दुकानों के बाहर चौड़ी २ सड़के बनी हुई थीं। सड़कों के दोनों और हरे भरे पेड़ लगे थे जिन की सघन छाया में मनुष्य बंड़ आराम से अाते जाते थे। नगर के व्यापारी लोग अनेक प्रकार की चीजें रत्न श्रादि देश विदेशों से मंगाकर विक्रय करते थे। अनेक चीजें अपने देश के शिल्पियों से बनवा कर बाहर अन्य देशों को भेजते थे । व्यापारी लोग व्यापार में सत्यता का पालन करते थे जिस से उनका व्यापार बढ़ा चढ़ा था । राज्यकी श्रीर से कोई भी ऐसा कर (महसूल) नहीं लगा था जो प्रजाको अ. सह्य हो । सारी प्रजा राम राज्य की तरह सुख चैन से निवास
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