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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (LG) ॥ १६ ॥ पिता बोल मुऊ हैयडे वस्यो, तुमो न्याय एम करता हश्यो || एह काम नहिं जग सार, श्रात्युं पाहुं सोवन हजार ॥ १७ ॥ तातें बुद्धि खरी मन धरी, न्याय करवो मूक्यो परहरी ॥ षन कहे हित शिक्षा खरी, न्याय करे विमासी करी ॥१८॥२०॥ ॥ ढाल ॥ बंधव जई लावो पाणी ॥ ए देशी ॥ ॥ परनी लखमी घणी जोइ, नर मत्सर म कर शो कोइ ॥ कर्मने श्रायत बे धन्न, शीद मेलुं करो तुमें मन्न ॥ १ ॥ इह लोकें परजवें जाई, मत्सर होये दुःखदायी ॥ मूंकुं चिंतवे परने जेह, होय पो ताने घरे तेह ॥ २ ॥ मन वश राखो सहु कोय, मूं वचनें पातक होय ॥ वश होय जेहनी काया, ते जननी यें जलें जाया ॥ ३ ॥ धान्य वहोरनुं तेह जंजा लो, पण नवि वंबेज कालो । लागो श्रौषधनो कर्म जोगो, नवी वांबे जगने रोगो ॥ ४ ॥ वस्त्रादिक वहोरे ज्यारें, मोंघुं नवि वंबे त्यारें ॥ अणचिंतव्युं मोंघुं होय, अनुमोद्ये पातक जोय ॥ ५ ॥ जेहनां निश्चल मन वे सार, तेने दीठे पुण्य अपार ॥ जेनां मांगं मन सदाय, तेने दीठे पातक थाय ॥ ६ ॥ बे मित्र मलि पंथें जाय, जइबेठा रसोइकर वाय ॥ पंथी हि० ७ For Private and Personal Use Only
SR No.020379
Book TitleHitshikshano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhdas Shravak
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1895
Total Pages223
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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