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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (ए) जो श्रापे तो जोजन करूं, विण दीधे नवि पाली फिरूं ॥ जिणें बेटीनुं खाधुं धन्न, ते उपर नवि माने मन्न ॥ ७॥ दीये गाल बोले श्रारडी, सुबुद्धि शेग्ने चिंता पडी ॥ गयो चार न्यायवाला कने, आवीने बो डावो मने ॥ ए ॥ न्याय करेवा अाव्या चार, कुमरी रोई तेणी वार ॥ हुँ रंमा ने अबला बाल, न्याय क रेजो थई दयाल ॥ १० ॥ पुरुष चार विमासे तहिं, पुत्रीवचन ते जूतुं नहिं ॥ पुण्यवंती जूठी नहिं कदा, तात हरामी खोटो सदा ॥ ११॥ तेडी पुरुषं पूब्यु साह, लेश कांय करो अन्याय ॥ शेठ कहे में ली, नधी, न वढं ते ९ पुत्रीवती ॥ १५ ॥ पुरुष कहे मानो तमे श्राज, वढतां रहेशे नहिं तुम लाज ॥ सुता तुमारी बालक रंग, तेहने दीजें सांहमुं दंग ॥ १३ ॥ दया धरीने करजो सार, आपो सोवन एक हजार ॥ काल नाव जोई त्यां साह, आप्या सोने य्या तेण गय ॥ १४ ॥ लोकमांहि निंदा विस्तरी, लेई दामने साह गयो फरी॥ न्याय तणा करनारा जेह, प्रायें जला न होये तेह ॥ १५ ॥ लोकमांही चाल्यो उपहास,रहे बेगे घर साह विमास ॥न्याय करवा नवि जाये फरी, त्यारें बोली निज दीकरी For Private and Personal Use Only
SR No.020379
Book TitleHitshikshano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhdas Shravak
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1895
Total Pages223
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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