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(ए३) पराक्रम कीजें त्यांही रे॥१०॥ जिम मयगल म होटो मूर्त रे, शीयांलनी दृष्टं दूजे रे॥ देखी खुशीय थयो तेणि वार रे, घणा दीवस लगी करुं आहार रे ॥ ११॥ण अवसरें जूख्यो सिंह रे, चाल्यो मयगल ताणी अबीह रे ॥ शीयाल तस शीश नमावे रे, स्वामि मृतकने तुं शुं खावे रे ॥ १२ ॥ उत्तमने एम करीवाल्यो रे, वली वाघ आवतो नाल्यो रे ॥ शीयाल कहे सिंह मारी रे, गयो नाहा वा मुफ बेसारी रे ॥ १३ ॥ नेद नांखतां बलवंत वलियो रे, नीच चीतरो श्रावी मलियो रे ॥ कह्यु वाघतणुं नद एह रे, कांश्क दीधुं वलियो तेह रे ॥ १४ ॥ पडे आव्यो एक शीयाल रे, उग्यो जंबुक तव तत काल रे॥बराबरीनो आमोपाड्यो रे, करी पराक्रम वेली काढयो रे ॥ १५ ॥ वढवाडीना चार प्रकार रे, मोटाने करवो जूहार रे ॥ धनवंतने धन नी श्राश रे, दमा श्रादरवी नर तास रे ॥ १६ ॥ वली दंत कलह होय ज्यांहिं रे, जुवटुं दीसे घरमां हि रे॥धातुरवादी सजनगुंछेषी रे,सदा बालसु होय विशेष रे॥१७॥आयपदने खरच न जूवे रे, नंगा दिक फाकी सूवे रे ॥ तिहां दारिज केरो वास रे,
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