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जस दंत घसाये ॥ बाया देहनी दीसे माठी, श्रीजे दिनें मृत थाय ॥ हो ज० ॥ ८ ॥ पग हश्युं पहेलुं शूकाये, तेने जिननुं शरण ॥ चेत पुरुष षट दिनमां आयु, एणें नेदें तुक मरण ॥ हो ज० ॥ ए ॥ हित शिक्षा कारण तुज कहेतो, कविजन रुषन दास ॥ वस्त्र वार जोश्ने पढेरे, जिम पहोंचे तुज आश ॥ ॥ हो ज० ॥ १० ॥ सर्व गाथा ॥ २४४ ॥ ॥ ढाल ॥ चोपाईनी देशी ॥
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॥ श्राशा पहोंचे थाप अपार, पहेरो वस्त्र जदा बुधवार || गुरु शुकर चोथो आदित्त, वस्त्र उजलां पहेरो मित्त ॥ १ ॥ हस्त धनिष्ठा चित्रा स्वाति, तव चीवर पढेरो एकांत । अश्विनी अनुराधा ने पुष्य, वस्त्र वावरो रेवति डुष्य ॥ २ ॥ रेवती पुनर्वसु रोहिणी, वली विशाखा दिये रुद्धि घणी ॥ श्रगल नांखी उत्तरा त्रण, वस्त्र वावरो उजले वर्ण ॥ ३ ॥ मंगल दिन रातां वावरे, पुनर्वसु ने पुष्य परिहरे ॥ उत्तरा त्रय ने रोहिणी, रातां वस्त्र न पड़ेरे गुणी ॥ ४ ॥ कनक प्रवा रातां वस्त्र, पढेरे धनिष्ठा जास पवि त्र ॥ अश्विनी रेवती हस्तादिक पंच, वावरजे म करे खलखंच ॥ ५ ॥ विवाह ठाकुर आपे जदा, मुहूर्त्त
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