________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
(६३) वी साव ॥ षनदास हितशिदा नांखे, कहे तं बोलह नाव ॥ १२ ॥ सर्व गाथा ॥ ५३४ ॥ ॥ ढाल ॥:पाट कुसमजिन प्रज्य परूपे ॥ए देशी॥
॥दौर तणा हवे नाव जणीजें, चोथे नहिं निर धार ॥ श्रापम ने चउदश टालो, अमास नहिं दिन सार ॥ हो नविका, कीजें आप विवेकोए श्रांक णी॥१॥त्रण्य वार तजे नर निश्चे, मंगल शनि रवि जेह ॥ संध्या रातें नख उतरावे, मूरख जगमां हिं तेह ॥ हो न ॥२॥ विद्या प्रारंन उबव जारे, कौर तजे नर त्यारें ॥ यात्रा रणे परवें परिहरजे, पंकि त पुरुषा वारे॥ हो ज॥३॥पोताने हाथे नवि चूं टे, नवि वीणे वलि श्राप ॥ श्राप लूगडं नवि मांगी जें, होय दारिनो व्याप ॥ हो न० ॥॥ स्नान तेक र, एते गमे, लोग नज्यो जस विमन॥चिताधूम ने नख उतरावे, जेहनें जूंठं स्वपन्न ॥ हो ज०॥५॥ वृक्ष सेवालें ढांक्युं पाणी, त्यां नर नवि अंघोलो ॥ दोहिलो पेशी मेले नीरें, नर नाये ते नोलो ॥ हो ज० ॥६॥ टाढे नीरें अंघोली पुरुषा, न जिमे जनुं अन्न ॥ उने जलें टाटुं अन्न उमे, एम सुख पामे त न्न ॥ हो ज० ॥ ॥ स्नान करी जस तन गंधाये,अने
For Private and Personal Use Only