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(५३) नर पटराणी ॥१॥ एम करपी चरित्र अनेको, सुणी पंमित धरिये विवेको ॥ उत्तमकुंल लखमी पामी, रूप नूषणधारी हुढं स्वामी ॥ २२ ॥ जलां वस्त्र विचारी लंगो, दान पाखें दीसे जूंमो॥नवि शोने ते निर्जागो, मद वारि विना जिम नागो ॥२३॥ नाक लोचन विण मुख जेह, करपीनुं दरिसण ते हवू ॥ सुणी शास्त्र धरो नर शानो, दीयो पात्र मु निने दानो ॥४॥ वली पांचमुं दान प्रकाश्युं, नेम नाथे तेह अन्यास्युं ॥ बंमी जोगने संयम लीधो, जयदान पशुनें दीधो ॥२५॥ मुनि मेतारज वलि जेह, पंखी कारण उसे देह ॥ मेघरथ महोटो माहा धीर, जेणे आयुं श्राप शरीर ॥१६॥ धनसंगम साधु गुणवंत, नवि उदवे परनो जंत ॥ नवि बोले पीले कापे, षट्कायने नवि संतापे ॥२७॥ एम सूधो श्रावक जेह, घणुं बेदन न करे तेह ॥ पीलण पीस ण परजाल, न करे जीवनो प्रतिपाल ॥ २७ ॥ अ जयदाननो दाता तेह, जीवने उगारे जेह ॥ एम पांचे दान में नास्यां, पुण्यवंत श्रावक अन्न्यास्यां ॥ ॥२५॥ कहे रुषन कवि हितशिक्षा, देजो साधुपु
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