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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (४७) तिहां वली, वाख्या एकांतें ॥१॥ नाहण तणा ने दज कह्या, नरहितने काज ॥ तेहनुं नाहण कयु खरुं, जीव राखे दाहाज ॥ ॥ तडके बेसी अं घोलियें, जिहां जीव न होय ॥ पूंजी पात्र लिये सही, पहेलुं दृष्टि जोय ॥ २३ ॥ पडना बाजोउ विषे,बे सी अंघोले ॥ जीव जंतु जोई करी, जल तडके ढोले ॥ २४ ॥ जयणा विना नर नवि तरे, पुण्य करणी करतां ॥ जीव तणी रक्षा करे, ते दीसे तरता ॥२५॥ ए अंघोल नेदज कह्या, करजो जीवरदा ॥ षन दास रंगे करी, नांखे हितशिदा ॥ २६ ॥४०३ ॥ ॥ ढाल ॥बही नावना मन धरो॥ए देशी॥ ॥ शिख देखें सुपुरुष नरा, जिनपूजा श्रदरजो रे ॥ वरजो रे ॥ उत्तर मुख चीवर नरा ए ॥१॥ उत्तर मुखें पूजा कही, पूरवें वलि विशेषो रे ॥ देखो रे ॥ वामनाग देरासरु ए॥२॥ दोढ पा णि उंचुं सही, प्रतिमा पछिम सामी रे ॥ दक्षिण रे ॥ सनमुख होये ते खलं ए ॥३॥ एम जिन पूजा कीजिये, चरण जानु कर चरचो रे ॥ अरचो रे॥ जिन दक्षिणनो जे खंनो ए॥४॥ मस्तकति लक करो सहि, तिलक नढुं कर जाउ रे ॥ गावें रे॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020379
Book TitleHitshikshano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhdas Shravak
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1895
Total Pages223
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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