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(६) दीपे काम अपारो ॥१॥ अग्नि बल दीपे सहि,तेज कांति वधारे॥खरज थाक मेल जंघडी, तस नासे त्यारें ॥१९॥ परसेवो बलणज टले, धन पाणी गाढुं॥ सोय अंघोल करे सही, जे न करे टाटुं ॥१५॥ गलाथकी हेतुं धूवे, वली ऊने नीरें॥ निरतिवाई शिर धुवे, सुख होय शरीरें ॥ १३ ॥ बीज बह था उम दिने, दशमी नवि नाये ॥ तेरश चउदश पूनमें, अमासे नवि नाये ॥ १४ ॥ श्रादित्य नावे नहिं, नर होवे तापो ॥ सोमें कांति थापे सही, मंगल मृत थापो ॥ १५ ॥ बुझें धन पामे सही, गुरु दरि जी थाय ॥ शुक्रे दोजागी सही, शनि सिडिज थाय ॥१६॥ नागा चिंतातुरा नरा, जश् श्राव्यो गाम ॥ वस्तु साथें जोजन करे, नाहण नहिं तस गम ॥ १७ ॥ अलंकार पहेरे नहिं, करे मंगल कामो॥ सजनने वलावी वले, नाहण न करे तामो ॥१०॥ तेलें ना जे कडं, तिहां जांखि नायो ॥ अंघोल नित्य करवी सही, तिहां न कही नायो ॥ १५ ॥ तेल न चोले नर वली, दिन होय जो पडवो॥ती रथ नूमि न चोलिये, वाख्या नर सरवो ॥२०॥ व्यतिपात दृष्टि नहिं, वैधृत संक्रांतें ॥ तेल न चोले
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