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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (४४) उत्तर पश्चिम नणी, शास्तरमांहे त्रण दिशि सुणी ॥ बेसी पुरुषने दातण करे, जीव जंतु पहेलु मन धरे ॥ १७ ॥ एम नांख्यो दातणनो नेद, सुणो पुरुष क री उंघ निषेध ॥ षन कवि कहे हित शिवाय, उंघे तेहनो अक्षर जाय ॥ १७ ॥ आंखें अंजन सु रमा तणुं, करतां निर्मल लोचन घणुं ॥ थाको जो जन उजागरो करी, ज्वरनो धणी मूके परहरी ॥ ॥१५॥ मस्तक दाढी उसे नित्य, प्रर्व दिशे त्यां धारे चित्त ॥ बे हाथे माथु नवि खणे, खरड्यो हाथ न दे शिर तणे ॥ २० ॥ आरीसो नित्य जोजो जाण, मांगलिक महोटुं एधाण ॥ पूरव सामो रहिने जोय, मेल नस्यो म म निरखो सोय ॥१॥ निशा सम य नर जोवे कोय, आयु हीण होये नर सोय ॥ दातण करतां पण म म जोय, वदन पखाली निर खो सोय ॥॥ श्रारीसो जोतां जो कहिं, धड उ पर शिर दीसे नहिं ॥ पखवाडे तस मरणज होय, उत्तम नर चेते सहु कोय ॥२३॥ अंबु तेलथने तर वार, तिहां मुख म जुङ नर ने नारि ॥ रुधिर मातरा मांहि नवि जोय, क्रोधीने आय घटतुं होय ॥४॥ आरीसो शरशव दाहिं घीय, बीलां फरसे पु For Private and Personal Use Only
SR No.020379
Book TitleHitshikshano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhdas Shravak
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1895
Total Pages223
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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