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(१७) ष्टी रे, टाले चउराशी॥ जघन्यथकी दश टालियें ए ॥ १० ॥ पन्नही मुख तंबोल रे, जल नवि धूकवू ॥ मैथुन तिहां कणे वरज, ए ॥१९॥ लहडी नीति नि षेध रे, वडी वेगें थकी ॥ जोजन सोवण जूवर्टी ए ॥१॥ श्राशातना एम टाली रे,चेश्वंदन करे॥शाप हाथ अलगो रही ए ॥१३॥ जघन्यथकी नव हाथ रे, अलग रही करी॥चैत्यवंदन करजे सही ए ॥१४॥
॥दोहा॥ ॥ जिन पूजंतां पामियो, मुक्ति पुरीनो वासना गकेतु निर्मल थयो, पूगी मननी आश ॥१॥ जि न जुहारि गुरु वंदतो, करतो कांश पञ्चरकाण ॥ गु रु सामो बेसी करी, नव रस सुणे वखाण ॥२॥ करे वखाणज नव नवां, रागें कथन कलाय ॥ गाहा गाथा दूहडो,सुणतां पंमित थाय ॥३॥ श्लोक ॥ मुंभे मुंमे मतिर्जिन्ना, कूपे कूपे नवं पयः ॥ देशे देशे न वाचाराः, नवा वाणी मुखे मुखे ॥४॥ अदर मंत्र विना नहिं, धन विण महीय न होय ॥ मूल नाहि उषध विना, उर्लन थाम्ना सोय ॥ ५ ॥ शास्त्रनाव पंमित खहे, न लहे मूढ अजाण ॥ चंद्रकांत श्र मृत जरे, न जरे बीजा पाषाण ॥६॥ जमरो
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