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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१ए) काने मांमयां रूषणां, गयो जब जोबन राय ॥१॥ मुंगर डंगर हुं नमी, वन वन जोऊ माय ॥ जडी एक न पायें, जेणें जोबन स्थिर थाय ॥२॥श्रा णंद कहे परमाणंद, नर नमिया ते काय ॥ जेणे वाटें जोबन गयुं, पगलां निहाले त्यांय ॥३॥ श्रावी सोहागण लकडी, हम तुम थयो पीयार ॥ जे कुब था सो चल गया, तुऊ शिर दीना नार॥४॥श्रावी सोहागण लकडी, तुफ विण आगल शून्य॥जे दाहाडा तुफ विण गया, ते वासर मुफ धन्य ॥ ५ ॥ जरा धूतारी धोबणी, धोया देश विदेश ॥विण पाणी विण पबरें, उजाल कीधा केश ॥६॥ सर्व गाथा ॥१५॥ ॥ ढाल ॥ चोपाश्नी देशी ॥ ॥ उजालकेश जिवारें थाय, जरा श्राविने यौव न जाय ॥ गति मति बल तस उढुंज्ञान, जाये शान अने वली वान ॥१॥ घरघरणी बेठी घरघरे, लोक घणां ते हासी करे ॥ प्रायः केण न माने कोय, हाथ पाय शिर भ्रूजे सोय ॥२॥ जरातणां लकण ए जोय, वृक्ष हु मुझ ससरो सोय ॥ दाणा पंच शालिना जेह, लोक देखतां दीधा तेह ॥३॥ श्रा गल जातां नाखी दीध, वली विचार बीजीयें कीध ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020379
Book TitleHitshikshano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhdas Shravak
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1895
Total Pages223
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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