SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 190
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१७) स्युंध जाणी नृप बंमतो, राज रमणी सुखलोग रे॥ राज्य श्रेणिकने देश करी, लीधो संयमयोग रे॥१० ॥ १७ ॥ शास्त्रना नेद ए ते लहे, सेवे पंमित पाय रे ॥ षन कहे हितशीखडी, सुणतां तो सुख थाय रे॥१०॥ १० ॥ सर्वेगाथा ॥ १५०३ ॥ ॥ ढाल ॥ चोपाईनी देशी ॥ ॥ सुख थाये तस अंगें घएं, उचित साचवे पु त्रज तणुं ॥ नगिनी जोजाई निज वहू, उचित एहनां साचवे सह ॥१॥ वदनी परीक्षा करी अपार, सों पवो निजघरनो जे जार ॥ जेम धन्नावे परीक्षाकरी, चार वह हंती तस खरी॥॥एक दिन ससरेकह्यो विचार, कोने देशुं घरनो नार॥परीक्षा काज तेड्यो परिवार, नक्ति करे त्यां कुटुंबनी सार ॥ ३ ॥ चारे वहु तेडी तेणी वार, पांच पांच कण शालिज सार॥ एकेक वहूने ससरो देह, मुफ थापण राखेजो तेह ॥४॥ मागुं तव मुऊ देजो मली, सुणी वचनने चारे वली ॥ वाटे वडीयें कस्यो विचार, गरढां अकल न होय निरधार ॥ ५॥ सर्वगाथा ॥ १५ ॥ ॥दोहा॥ ॥ दांत बत्रीश खशी गया, नयणे दीधो दाय॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020379
Book TitleHitshikshano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhdas Shravak
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1895
Total Pages223
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy