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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १८५ ) जलो वे एकai रह्यां ॥ इण दृष्टांतें समजो सहु, आणो यो घर विमासी बहू ॥ ५ ॥ जो ऋण मिलतां ढुंतां दोय, जूजूए मारग चाव्यां सोय ॥ देखी चोरने ईर्ष्या, नूपें मिलतुं कीधुं सही ॥ ६ ॥ इस्या नाव सुणे नर तेह, पंकित पासें बेसे जेह ॥ घणुं जमे ने मो पडे, तेहने बोल ए क्यांथी जडे ॥ ७ ॥ सांगणसुत कहे हित शिक्षाय, सुणतां कुमति कदा ग्रह जाय ॥ न सुणे ते नर रहे निटोल, रुषज कहे उपगारी बोल ॥ ८ ॥ सर्वगाथा ॥ १५६० ॥ ॥ ढाल || चाली चतुर चंद्राननी ॥ ए देशी ॥ ॥ राग मल्हार ॥ घर तो जार सुतने दिये, करी आप परीक्षाय रे ॥ राज्य श्रेणिकने या पियुं, जिम प्रसेनजित राय रे ॥ घर तो जार सुतने दिये ॥ ए. कणी ॥ १ ॥ एकशो पुत्र बे रायने, घाट्या रडा मां रे ॥ सुखडी करं किया जल जरी, मूके राय वली त्यांहिं रे ॥ घर० ॥ २ ॥ म म बोडो करंरुनां ढांक यां, खाज्यो सुखडी वीर रे ॥ कुंज मुखमोर म उघाड शो, पीज्यो शीतल नीर रे ॥ घर० ॥ ३ ॥ १५६३ ॥ ॥ दोहा ॥ नित्य नरणुं ने जवो मुख्युं, ठाम न मूके ठेठ ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020379
Book TitleHitshikshano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhdas Shravak
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1895
Total Pages223
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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