________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
(१४) वढती नरशुं सामी फरी॥२॥सर्वगाथा ॥ १५४ए।
॥दोहा॥ ॥ नर जलेरो शुं करे, जिहां घर नार कुनार ॥ शीवे दो अंगुलां, उ फाडे अंगुल चार ॥ १॥मांचे माकण घर अहि, जिण वन विखनी वेति ॥ रूगे राय कुनारजा, पांचे सूतां मेल ॥२॥ “लोक ॥ कुग्रामवासः कुनरेंजसेवा, कुनोजनं क्रोधमुखी च नार्या ॥ कन्याबहुत्वं च दरिता च, षड् जीवलोके नरकानि संति ॥३॥ सर्वगाथा ॥ १५५५ ॥
॥ ढाल ॥ चोपाईनी देशी ॥ ॥ टाली नर सरखां कियां दो श्रण मिलतुं होय ॥ नर कालो नारी फूटरी, रात दिवस पडतां ते वढी ॥१॥श्रा नारी घर सुंदर नाह, न्हानानो सुत ते कहेवाय ॥ नारी महोटानी दीकरी, वढती नरशुं साहामी फरी ॥॥ एहने में उपाडी करी, महोटाने घर मूकी फरी। एहनी स्त्री न्हानानी धीय, न्हानाने घेर मूकी तेह ॥३॥ जो वर माग्यो मुझने देह, तो एम राखो खामी एह ॥ राय कहे तुं सबल सुजाण, तें कीधुं तें मुऊ परिमाण ॥४॥ सरिखे सरिखां निजघर गयां, जली
कियां दोय, पहेला अहिं
For Private and Personal Use Only