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( १६ ) ॥ दोहा ॥
॥ मरणसमय चेत्यां नहिं, न कस्यो उंचो हाथ ॥ श्राराधना सण विना, चाट्यो जीव अनाथ ॥१॥ जिहां बे पोर जगामणुं, तिहां जीव संबल लेह || जिहां चोराशी लरक भ्रमण, तिहां नर विलंब करेह ॥ २ ॥ जावजीव धन मेलियं, कोइ न यावे साथ ॥ धन मूकीने चालियो, भूमि पड्या बेहु हाथ ॥ ३ ॥ पुहवी नित्य नवेरडी, पुरष पुराणा थाय ॥ वारें ल अप्पणे, नाटक नाची जाय ॥ ४ ॥ पुहवी रंग विरंगिणी, कदि नवि पूगी यश ॥ केता राय रमाडि या, केता गया निराश ॥ ५ ॥ सर्व गाथा ॥ १२५ ॥ ॥ सोरठा दोहा ॥
॥ चाल्यो जाये साथ, को केने पडखे नहिं ॥ वा वरि जो हाथ, वारे वहेते आपणे ॥ १॥ गई सवा र वय, वार सबली यावे नहिं ॥ हियडा हाथ घसी स, बेठो वड कलियो थई ॥ २ ॥ जब लगे रोग जरा नहिं, जब लगे इंद्र परम्म ॥ दशवैका लिकमांहे कयुं, तब लगें कीजें धर्म्म ॥ ३ ॥ जे दीजें कर अ प्पणे, ते लद्धे परलोय ॥ दीजंतां धन संपजे, कूर्ज व हंतो जोय ॥ ४ ॥ वारे लद्धे श्रप्पणे, वाहे जडफड
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