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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १६३) ॥ ढाल ॥ सो सुत त्रिशला ॥ ए देशी ॥ ॥ श्रांगल मूकी मांगल वासे, मांगल मूकी मूल प्रकाशे ॥ जो जाणे तो पाडे हासें, वणिगकला थी दैवे नासे ॥१॥ सर्वगाथा ॥ १३७१ ॥ ॥ ढाल ॥ चोपाईनी देशी ॥ ॥ वणिक तस्यो ते नवि जाय, तेणें देवने कह्यो उपाय ॥ सात नूमि घर आहीं कणे करो, मणि मोति हीरे ते नरो ॥ १॥ देव कहे में की, सही, वेगो बोले वणिग गहगही ॥ वली करो ही मोला खाट, उपर पाथरो मशरु पाट ॥२॥ वली निपा उ चार वखार, नरो करियाणां तेणे गर॥देव कहे में की, एह, नांखो बीजुं जोश्य जेह ॥३॥ हेम वंत परवत वन जई, सात ताड उंचो ते सही ॥ अस्यो वांस आणो ते अहिं, उपर आडूं लाकडं तहीं ॥४॥ रोपी वांसने सांकल थाणी, सात ताड लांबी ते जाणी ॥ एक बेडो उचो बांधजे, पनी मांक डो तुं पण थजे ॥ ५॥ सांकल आप गलामांहि जडो, वांस उपर जश् उतरो चढो ॥ बीजुं काम होये ते करे, नहिंकर सदा लगें एम फरे ॥६॥ देव कहे हुँ मोहोकम हतो, मुफथी वाणिग ए दीप For Private and Personal Use Only
SR No.020379
Book TitleHitshikshano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhdas Shravak
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1895
Total Pages223
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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