________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
(१७) राजपिंग ते अतिही असार ॥ १७ ॥ दश सोनार सम हिज एक, जेहनां पापतणो नहिं बेक ॥ द्विज दश सम एक चक्री होय, दश चक्री सम आहेडी जोय ॥१॥ दश आहेडी सम वेश्याय, दश वेश्या सम एक राजाय ॥ ते माटें सुण नूपति कडं, राज पिंम निथें नवि ग्रहुं ॥ २०॥ पगे लागी ने कहे रा जान, व्यवहारशुळे देउं तुम दान ॥ श्राप दाम पर सेवा तणा, लेतां गुण तुक मुझने घणा ॥२१॥ नृप वचने दाम सीधा जिसे, अन्य विप्र मन खीज्या तिसे ॥ तेडी तेहने सोवन देह, खाइ रह्या थोडे दिन तेह ॥ २५ ॥ आठ दाम लेई जे गयो, मूकी कोथलीमाहे रह्यो ॥ खाये खरचे देतो दान, नवि खूटे जेम नवे निधान ॥२३॥ ज्ञानव्रत वाध्या नट दोय, नृप नंमार वधंतो जोय ॥न्यायव्य तणो महि माय, षज कहे नृप सोम कथाय ॥२४॥ १०॥ ॥ ढाल ॥प्रनु चित्त धरीने अवधारो
मुक वात ॥ ए देशी॥ ॥कडं चोनंगी दाननी जी, न्याय तणुं वित्त सार॥ दान सुपात्रे जो दिये जी, उत्तम नंग अपार ॥सोना गी सुणो चोनंगी रे एह ॥१॥ए आंकणी ॥ देव
For Private and Personal Use Only