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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १२६ ) र ॥ पात्र जलुं कोण या गाम, दीजें दान तस पुण्यने काम ॥ १० ॥ कहे प्रधान एक विप्र पार, पण न्याय द्रव्यतणोज विचार ॥ राजाने तो वली विशेष, जेदनां पाप तपो नहिं बेक ॥ ११ ॥ देना रानुं चित्त विशुद्ध, बेनारो अति निर्मल बुद्ध ॥ दो हिला दोय मिले जगमांय, जोह मिले तो पुण्य बहु त्यां ॥ १२ ॥ जनुं त्रने बीज सुसार, तिहां कणे अन्ननो होय अंबार ॥ क्षेत्र बीज जो होय असार, तिहां न पुण्य तणो विचार ॥ १३ ॥ इस्यां वच न मंत्रीनां सुणी, खरो विचार करे पुरधणी ॥ थ‍ हमाल करे वहित, व्यवहार शुद्ध धन मेले खरुं ॥ १४ ॥ सूर्य ग्रहणनो अवसर थयो, त्यारे राय नि ज राजें गयो । तेड्या ब्राह्मण मल्या अनेक, अने क दान दिये धरी विवेक ॥ १५ ॥ एक निलजी तो जेह, पाड चडावी तेड्यो तेह ॥ राजा पाय न मीने कहे, कोई धन महारुं नवि ग्रहे ॥ १६॥ विप्र कहे सुए जांखं तुक, राजपिंग नवि कल्पे मुऊ || लोजी जेहने लेव्रं रुचे, ते ब्राह्मण सहि नर गें पचे ॥ १७ ॥ मधु मिष्ट विष सरिखो पिंग, लेइ विप्र म म यतम दंग ॥ पुत्र मांस जखे ते सार, For Private and Personal Use Only
SR No.020379
Book TitleHitshikshano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhdas Shravak
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1895
Total Pages223
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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